जुगाड़
The way a character like me tackles various uneasy positions he is put into unwillingly...
सेठ तेलिचंद के राज में,
बिन चोकी बिन काज के,
चिकने तलवे चाट के,
ख़ूब उडाई मौज... फिर डर काहे का
रोज़ भरी थी गोज... फिर डर काहे का
दिमाग पे पूरा ईस्ट्रेन (स्ट्रेन) था,
ज्ञानिमल का टेम (टाईम) था,
२४ बाई ७ का गेम था,
याडी, संगी चार... फिर डर काहे का
काम करवाए हज़ार... फिर डर काहे का
भीमसेन का जुग भया,
नित दंगल. अंग दुख रहा,
जुगत भिडाई. दिमाग चला,
घर भैठे थानेदार... अब डर काहे का
छोरो भयो सरकार... अब डर काहे का
सेठ तेलिचंद के राज में,
बिन चोकी बिन काज के,
चिकने तलवे चाट के,
ख़ूब उडाई मौज... फिर डर काहे का
रोज़ भरी थी गोज... फिर डर काहे का
दिमाग पे पूरा ईस्ट्रेन (स्ट्रेन) था,
ज्ञानिमल का टेम (टाईम) था,
२४ बाई ७ का गेम था,
याडी, संगी चार... फिर डर काहे का
काम करवाए हज़ार... फिर डर काहे का
भीमसेन का जुग भया,
नित दंगल. अंग दुख रहा,
जुगत भिडाई. दिमाग चला,
घर भैठे थानेदार... अब डर काहे का
छोरो भयो सरकार... अब डर काहे का