Monday, November 09, 2009

जिंदगी

जिंदगी क्या है, चार दिन की पाती
थोडी गुजरी, थोडी बाकी

एक अनसुलझी पहेली है जिंदगी
सुलझाना जरूरी तो नही
लगातार बनती, कभी बिगड़ती,
एक नायाब तस्वीर है जिंदगी
हर रंग के मायने बतलाना, जरूरी तो नही

विद्वानों से सुना की मंजिल पाना है जिंदगी
हुं, एक यादगार सफर का फ़साना है जिंदगी

"है सीखना अभी बहुत" - हर मोड़ पर है ये एहसास दिलाती
जिंदगी क्या है, चार दिन की पाती,
थोडी गुजरी, थोडी बाकी

3 comments:

Suraj said...
This comment has been removed by the author.
Suraj said...

Aage badhte jaana aur hamesha kuch naya sikhna hai jingadi.Nice poem yaar.

footloose said...

awesome